अल्बानिया में युद्ध के बीच की अवधि (1919-1939) महत्वपूर्ण राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों का समय था। यह अवधि पहली विश्व युद्ध के बाद और दूसरी विश्व युद्ध की शुरुआत से पहले का समय है, जब अल्बानिया कई अस्थिरताओं, लोकतंत्र स्थापित करने के प्रयासों, तानाशाही शासनों और आर्थिक सुधारों से गुज़री। इस समय की घटनाओं ने देश की भविष्य की किस्मत पर गहरा प्रभाव डाला।
पहली विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद 1918 में, अल्बानिया एक कठिन स्थिति में था। युद्ध ने देश की अर्थव्यवस्था और आधारभूत संरचना को गंभीर क्षति पहुँचाई, और अनेक शरणार्थियों को छोड़ दिया। 1913 के लंदन सम्मेलन के परिणामस्वरूप, अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अल्बानिया की स्वतंत्रता को मान्यता दी, लेकिन उसकी सीमाएँ अनिश्चित रहीं, और अल्बानिया पड़ोसी राज्यों के द्वारा अल्बानियाई क्षेत्रों पर नियंत्रण प्राप्त करने के प्रयासों के चलते बाहरी खतरों का सामना कर रहा था।
1920 के दशक में अल्बानिया में गणतंत्र की स्थापना हुई, लेकिन राजनीतिक स्थिति अत्यंत अस्थिर बनी रही। बार-बार सरकारों में परिवर्तन, आंतरिक संघर्ष और विभिन्न राजनीतिक समूहों के बीच सत्ता की लड़ाई ने अराजकता का माहौल उत्पन्न किया। इस अस्थिरता का एक प्रमुख कारण राजतंत्र समर्थकों और गणतंत्रियों के बीच संघर्ष था।
1925 में देश में राजतंत्र स्थापित किया गया, और अहमद ज़ोगु अल्बानिया के राजा के रूप में जिने ज़ोगु I बने। उनके शासन को केंद्रीय सत्ता को मजबूत करने, राजनीतिक विरोध को दबाने और तानाशाही शासन स्थापित करने का प्रयास किया गया। ज़ोगु I ने एक मजबूत राज्य की स्थापना के लिए नीतियाँ अपनाईं, लेकिन उनकी प्रशासनिक विधियों ने जनसंख्या में असंतोष पैदा किया।
युद्ध के बीच की अवधि में अल्बानिया ने आर्थिक विकास के प्रयास किए। ज़ोगु I की सरकार ने युद्ध से नष्ट हुई अर्थव्यवस्था को पुनर्स्थापित करने के लिए सुधार लागू किए। मुख्य प्रयास कृषि के विकास की ओर केंद्रित थे, जो अधिकांश जनसंख्या के लिए आय का मुख्य स्रोत था।
एक प्रमुख पहल अवसंरचना — सड़कों, पुलों और जलापूर्ति प्रणाली का निर्माण थी। देश में स्कूलों और चिकित्सा संस्थानों का विकास शुरू हुआ। हालांकि, इनमें से अधिकांश प्रयास वित्तीय कठिनाइयों और संसाधनों की कमी का सामना कर रहे थे, जो उनकी सफलता को सीमित करता था।
युद्ध के बीच की अवधि में अल्बानिया की विदेशी नीति जटिल और विपरीत थी। पड़ोसी देश, जैसे यूगोस्लाविया और ग्रीस, अल्बानिया की कुछ क्षेत्रों पर दावा करते रहे। ज़ोगु I की सरकार ने इटली के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने की कोशिश की, जिससे कई अल्बानियों में असंतोष उत्पन्न हुआ। इतालवी प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ा, और 1930 के दशक के अंत तक इटली ने वास्तव में अल्बानियाई राजनीति के कई पहलुओं पर नियंत्रण कर लिया था।
1934 में इटली के साथ सहयोग का एक समझौता किया गया, जिसके परिणामस्वरूप अल्बानिया में इतालवी प्रभाव का विस्तार हुआ। यह जनसंख्या और राजनीतिक विपक्षी समूहों के बीच असंतोष को बढ़ाने का कारण बना, जो देश की स्वतंत्रता और संप्रभुता को बनाए रखने के लिए प्रयासरत थे।
युद्ध के बीच की अवधि अल्बानिया में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का समय भी बना। देश में कई सांस्कृतिक और शैक्षिक पहलों का उदय हुआ। अल्बानियाई भाषा, साहित्य और कला के विकास पर मुख्य ध्यान केंद्रित किया गया। इस अवधि में पहले अल्बानियाई समाचार पत्र और पत्रिकाएँ सामने आईं, जिसने ज्ञान और राष्ट्रीय आत्म-चेतना के विचारों के प्रसार में योगदान दिया।
समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को भी ध्यान में रखनाजरूरी है। इस समय महिला सुधार प्रक्रिया शुरू हुई, जिसने अल्बानियाई समाज में महिलाओं की स्थितियों में सुधार किया। महिलाएँ शिक्षा और सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने लगीं, साथ ही राजनीति में भी।
अल्बानिया में युद्ध के बीच की अवधि महत्वपूर्ण परिवर्तनों और विरोधाभासों का समय था। देश आंतरिक अस्थिरता, राजनीतिक दमन और बाहरी खतरों की चुनौतियों का सामना कर रहा था। फिर भी, यह अवधि भविष्य के परिवर्तनों और स्वतंत्रता के प्रति प्रयासों की नींव भी बनी, जो अंततः दूसरी विश्व युद्ध के दौरान प्रकट होगी। इस समय की स्मृतियाँ समकालीन अल्बानियाई पहचान और राजनीति पर प्रभाव डालती रहती हैं।