अरस्तू (384–322 ईसा पूर्व) — प्राचीनता के महानतम विचारकों में से एक, प्लेटो का शिष्य और अलेक्ज़ैंडर महान का शिक्षक। उनके कार्यों में कई विषय शामिल हैं, जिनमें रूपात्मकता, नैतिकता, राजनीति, तर्कशास्त्र और प्राकृतिक विज्ञान शामिल हैं। अरस्तू को कई ज्ञान के क्षेत्रों का संस्थापक माना जाता है और उनका बाद के दार्शनिक और वैज्ञानिक परंपराओं पर बड़ा प्रभाव पड़ा।
अरस्तू का जन्म स्टैगीरा में हुआ, जो मैसेडोनिया के तट पर एक छोटा सा शहर है। 17 वर्ष की आयु में वह एथेंस में प्लेटो की अकादमी में दाखिल हुए, जहाँ उन्होंने लगभग 20 वर्ष बिताए। प्लेटो की मृत्यु के बाद, अरस्तू ने अकादमी को छोड़ दिया और विभिन्न दार्शनिक और वैज्ञानिक शिक्षाओं का अध्ययन करने के लिए यात्रा करना शुरू किया।
एथेंस लौटने पर, उन्होंने अपनी स्कूल — लाइकेय की स्थापना की। यहाँ अरस्तू ने कक्षाएँ लीं, अनुसंधान किए और अपने प्रमुख कार्य लिखे। उनके दार्शनिक दृष्टिकोण प्लेटोनिज़्म से भिन्न थे, और वे अनुभवात्मक अनुसंधान और अवलोकन पर जोर देते थे।
अरस्तू के मुख्य विचारों को कई प्रमुख विषयों में विभाजित किया जा सकता है:
अरस्तू ने प्राकृतिक विज्ञानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके अनुसंधान में प्राणीशास्त्र, वनस्पति विज्ञान, भौतिकी और खगोलशास्त्र शामिल थे। उन्होंने पहले जीवित प्राणियों को वर्गीकृत किया और उनके व्यवहार और जीवन चक्रों का वर्णन किया।
जीवविज्ञान के क्षेत्र में उनका कार्य कई सदियों तक प्रासंगिक रहा, और कई उनकी अवधारणाएँ केवल आधुनिक समय में पुनर्विचार की गईं।
अरस्तू ने पश्चिमी दार्शनिकी और विज्ञान के विकास पर बड़ा प्रभाव डाला। उनके विचार मध्य युग के स्कोलास्टिक के लिए महत्वपूर्ण थे और आधुनिक सोच में भी वे महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
अरस्तू के कार्यों का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है, और उनकी अवधारणाएँ फिलहाल भी दार्शनिक मंडलों में चर्चा की जा रही हैं और विकसित की जा रही हैं।
अरस्तू मानवता के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों में से एक बने हुए हैं। उनकी बहुपरक विरासत दार्शनिकों, वैज्ञानिकों और उन लोगों को प्रेरित करती है जो मानव अस्तित्व और हमारे चारों ओर की दुनिया को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
दुनिया के अध्ययन और ज्ञान का उनका दृष्टिकोण अभी भी प्रासंगिक है, जो अनुभवात्मक विधि और आलोचनात्मक सोच के महत्व पर जोर देता है।