तुर्की, यूरोप और एशिया के चौराहे पर स्थित, राजनीतिक प्रणाली के विकास में एक अद्वितीय इतिहास रखता है। इसकी राजनीतिक संरचना कई बदलावों से गुजरी है, ओटोमन साम्राज्य से आधुनिक गणतंत्र तक। इस लेख में तुर्की की सरकारी प्रणाली के विकास पर चर्चा की गई है, जिसमें महत्वपूर्ण घटनाएँ और सुधार शामिल हैं, जिन्होंने आधुनिक राजनीतिक संरचना का निर्माण किया, जिसे आज तुर्की गणतंत्र के रूप में जाना जाता है।
ओटोमन साम्राज्य, जो 13वीं सदी के अंत से 20वीं सदी की शुरुआत तक अस्तित्व में रहा, तुर्की की सरकारी प्रणाली के निर्माण की आधारशिला बना। कई सदियों तक ओटोमन साम्राज्य विश्व की सबसे शक्तिशाली और बहु-राष्ट्रीय शक्तियों में से एक रहा। साम्राज्य का शासन पूर्ण राजशाही के आधार पर था, जहाँ सुलतान की असीम शक्ति थी।
ओटोमन साम्राज्य की सरकारी संरचना केंद्रीकृत थी, और शक्ति सुलतान के हाथों में सन्निहित थी, जो न केवल राजनीतिक नेता थे, बल्कि मुसलमानों के धार्मिक प्रमुख भी थे। साम्राज्य को प्रांतों में विभाजित किया गया था, प्रत्येक का नियंत्रण सुलतान द्वारा नियुक्त गवर्नर के पास था। शासन प्रणाली इस्लामिक कानून (शरियत) और पारंपरिक ओटोमन कानूनों के सिद्धांतों पर आधारित थी।
ओटोमन साम्राज्य ने "मिल्लेट" प्रणाली का भी उपयोग किया, जहाँ विभिन्न जातीय और धार्मिक समूहों को अपने मुद्दों में कुछ स्वायत्तता प्राप्त थी। उदाहरण के लिए, ईसाइयों और यहूदियों को अपने धार्मिक नेताओं के माध्यम से अपने आंतरिक मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति थी। इस प्रकार की शासन प्रणाली बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक साम्राज्य में स्थिरता प्रदान करती थी।
19वीं सदी में ओटोमन साम्राज्य ने कई गंभीर समस्याओं का सामना किया, जिसमें आंतरिक विद्रोह,.external threats और आर्थिक कठिनाइयाँ शामिल थीं। इसने सुलतान के सरकार को देश के आधुनिकीकरण के लिए सुधार शुरू करने पर बाध्य किया। इस काल के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व सुलतान महमूद II थे, जिन्होंने सेना, शिक्षा और प्रशासन के क्षेत्र में सुधारों की एक श्रृंखला शुरू की।
इस काल के मुख्य सुधारों में नए कानूनी मानदंडों का निर्माण और सेना का सुधार शामिल था। 1839 में प्रसिद्ध हाटी-शरीफ जारी किया गया, जिसमें ओटोमन साम्राज्य में ईसाई और यहूदी अल्पसंख्यकों के लिए कानूनी समानता की गारंटी दी गई। हालाँकि इन सुधारों ने ओटोमन साम्राज्य के और कमजोर होने को नहीं रोका।
बाद में, 19वीं सदी के अंत में, आंतरिक और बाहरी खतरों के जवाब में, साम्राज्य में "टंज़ीमात" के रूप में जाने जाने वाले सुधारों का एक कार्यक्रम प्रारंभ हुआ, जिसका उद्देश्य अधिक केंद्रीकृत नौकरशाही प्रणाली का निर्माण, शिक्षा में सुधार और यूरोपीय शासनों के सिद्धांतों को लागू करना था। हालाँकि ये सुधार भी साम्राज्य को पूरी तरह से स्थिर नहीं कर सके, जिससे अंततः पहले विश्व युद्ध के बाद इसके पतन का कारण बना।
ओटोमन साम्राज्य के पतन और 1918 में मुड्रॉस शांति संधि पर हस्ताक्षर के बाद, पूर्व साम्राज्य के क्षेत्र में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष शुरू हुआ। यह संघर्ष, जिसका नेतृत्व मुस्तफा केमाल अता तुर्क ने किया, 1923 में तुर्की गणतंत्र की स्थापना के साथ समाप्त हुआ। अता तुर्क तुर्की के पहले राष्ट्रपति बने और नई सरकारी प्रणाली के संस्थापक थे।
अता तुर्क के नेतृत्व में तुर्की ने धर्मनिरपेक्षता और आधुनिकीकरण की दिशा में निर्णायक कदम उठाया। नई सरकारी प्रणाली का मुख्य उद्देश्य धार्मिक संस्थानों से स्वतंत्र एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाना था। अता तुर्क ने कानून, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्र में व्यापक सुधार किए। एक महत्वपूर्ण सुधार यूरोपीय मॉडलों के आधार पर नए नागरिक सहकारी का अधिग्रहण और अरबी वर्णमाला के स्थान पर लैटिन वर्णमाला का शुरू किया।
इसके अतिरिक्त, शिक्षा, सेना और राज्य सेवा का धर्मनिरपेक्षीकरण किया गया। अता तुर्क ने औद्योगिक विकास, कृषि के आधुनिकीकरण और देश की अवसंरचना में सुधार की दिशा में भी प्रयास किए। ये सभी सुधार तुर्की को एक आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष राज्य में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1938 में अता तुर्क की मृत्यु के बाद, तुर्की ने आधुनिककरण की दिशा में कदम बढ़ाना जारी रखा, लेकिन जटिल राजनीतिक परिवर्तनों और बाहरी खतरों के परिस्थिति में। 1950 में तुर्की ने एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मोड़ का अनुभव किया: पहले स्वतंत्र चुनावों में अदनान मेन्डेरस के नेतृत्व में लोकतांत्रिक संघ का उदय हुआ। इसका अर्थ तुर्की में बहु-पार्टी राजनीतिक प्रणाली की शुरुआत था।
1960 में देश में पहला सैनिक तख्तापलट हुआ, जिसने मेन्डेरस सरकार को गिरा दिया। हालाँकि दस साल बाद, 1971 में, तुर्की ने फिर से एक सैनिक तख्तापलट का अनुभव किया, और 1980 में देश में तीसरा तख्तापलट हुआ। ये सभी घटनाएँ विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक समूहों के बीच संघर्षों के कारण देश में राजनीतिक अस्थिरता का संकेत थीं।
1980 के दशक से, तुर्की ने महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन का अनुभव किया। पूर्वी यूरोप के देश और सोवियत संघ में परिवर्तन हो रहे थे, जबकि तुर्की आधुनिक, लोकतांत्रिक देश के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए प्रयासरत था। 1983 में, राजनीतिक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप, नई पार्टी, न्याय और विकास पार्टी (AKP) का गठन हुआ, जिसने बाद में तुर्की की राजनीति के विकास पर प्रभाव डाला।
आज तुर्की एक राष्ट्रपति गणराज्य है जिसमें मजबूत कार्यकारी शक्ति है, जिसमें presidente एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1982 में स्वीकृत संविधान तुर्की को एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, कानूनी राज्य के रूप में परिभाषित करता है। 2017 में जन referendum के बाद, तुर्की में एक नई राष्ट्रपति प्रणाली लागू की गई, जिसने राष्ट्रपति की शक्ति को काफी बढ़ा दिया और संसद की भूमिका को कम कर दिया। इस निर्णय ने व्यापक सार्वजनिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया को उत्तेजित किया क्योंकि इससे एक व्यक्ति के हाथ में शक्ति का केंद्रीकरण हुआ।
तुर्की में राजनीतिक दलों की प्रणाली विकसित होती रही है, जिसमें सत्तारूढ़ पार्टी, न्याय और विकास पार्टी, राजनीतिक मंच पर हावी है। पिछले दशकों में भी तानाशाही प्रवृत्तियों में वृद्धि, प्रेस की स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों की सीमाओं को देखा गया है।
हालांकि, तुर्की अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना हुआ है, जो नाटो, यूरोपीय संघ और पड़ोसी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखता है। सरकारी तंत्र का आधुनिकीकरण और आर्थिक परिवर्तन तुर्की की सरकारी प्रणाली के महत्वपूर्ण पहलू बने रहे हैं।
तुर्की की सरकारी प्रणाली का विकास सदियों की स्वतंत्रता, आधुनिककरण और स्थिरता के लिए संघर्ष का परिणाम है। ओटोमन काल से लेकर तुर्की गणतंत्र की स्थापना, अता तुर्क के सुधारों और वर्षों के राजनीतिक परिवर्तनों के बीच, तुर्की ने अपनी राजनीतिक संरचना को आधुनिक परिस्थितियों के अनुकूल बनाया है। भविष्य में, राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास और लोकतांत्रिक सुधार के मुद्दे देश के आगे के विकास के लिए महत्वपूर्ण बने रहेंगे। तुर्की परंपराओं और आधुनिक चुनौतियों के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश करता रहेगा, अपनी विशेष सरकारी प्रणाली का निर्माण करता रहेगा।